हेलो दोस्तों स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग के आज की नई पोस्ट में जिसमें हम आपको खाटू श्याम मंदिर का इतिहास, राजस्थान (khatu shyam mandir history in hindi) के बारे में जानकारी देने वाले हैं। वैसे तो हम आपको अपने पिछले लेख में खाटू श्याम मंदिर के बारे में जानकारी दे चुके हैं लेकिन खाटू श्याम मंदिर का ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व काफी प्रसिद्ध है । आप लोगों को खाटू श्याम मंदिर का इतिहास (khatu shyam mandir history in hindi)के बारे में जरूर जानना चाहिए। इसलिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ना।
खाटू श्याम के बारे में- About to Khatu Shyam
दोस्तों खाटू श्याम मंदिर का इतिहास के बारे में जाने से पहले हमें सबसे पहले यह भी जान लेना चाहिए खाटू श्याम किन्हें कहते है। और खाटू श्याम जी क्यों प्रसिद्ध है। बताना चाहेंगे कि जिन्हें हम सभी लोग हारे का सहारा खाटू श्याम जी के नाम से जानते हैं वहां भगवान श्री कृष्ण के अवतार माने जाते हैं। श्री खाटू श्याम जी भगवान श्रीकृष्ण के कलयुगी अवतार के रूप में जाने जाते हैं। मान्यता के आधार पर बताया जाता है कि बाबा खाटू श्याम का संबंध महाभारत काल से जुड़ा हुआ है जहां पर वह पांडुपुत्र भीम के पौत्र थे। उनकी अपार शक्ति एवं क्षमता से प्रसन्न होकर भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें कलयुग में अपने नाम से पूजे जाने का वरदान दिया। इसी पौराणिक महत्व कथा पर प्रचलित है राजस्थान के सीकर जिले में भव्य खाटू श्याम जी का मंदिर आस्था और धार्मिक महत्व के साथ साथ अपने चमत्कारिक कार्यों के लिए पूरे देश विदेश में मशहूर मंदिर है।
खाटूश्याम जी मंदिर के बारे में – about to Khatu Shyam Mandir in Hindi
खाटू श्याम जी के संपूर्ण जानकारी हम अपने पिछले लेख में चुके हैं लेकिन अपने पाठकों की पठनीयता को मध्य नजर रखते हुए हम एक छोटा सा परिचय खाटू श्याम जी के मंदिर के बारे में देना चाहते हैं। बताना चाहेंगे कि भारत के राजस्थान राज्य में सीकर में मौजूद रसीद खाटू श्याम जी का मंदिर अपनी आस्था और भक्ति के साथ पूरे देश में मशहूर है। खाटू श्याम मंदिर का निर्माण खाटू गांव के शासक राजा रूप सिंह चौहान एवं उनकी पत्नी नर्मदा कंवर द्वारा सन 1027 में बनाया गया था। जबकि माना जाता है कि खाटू श्याम मंदिर का पुनर्निर्माण मशहूर दीवान अभय सिंह ने 1720 में करवाया था।
खाटू श्याम मंदिर का इतिहास – khatu shyam mandir history in hindi
खाटू श्याम मंदिर यानी कि बाबा खाटू श्याम जी की पूरी कहानी महाभारत से जुड़ी हुई है। आपको बता दें कि जिन्हें हम हारे का सहारा यानी कि खाटू श्याम जी के नाम से जानते हैं उनका नाम बर्बरीक हुआ करता था। बर्बरीक जोकि एक बलवान गदाधारी भीम और नागकन्या मोरवी के पुत्र थे। बलवान होने के साथ-साथ बचपन से ही उनके अंदर वीर योद्धा बनने की संपूर्ण गुण विद्यमान थे। बताया जाता है कि उन्होंने युद्ध करने की कला अपनी मां नागकन्या एवं श्री कृष्ण से प्राप्त की थी।
किवदंती है कि उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या करने के बावजूद तीन बाण प्राप्त किए। एक समय की बात है जब उन्हें कौरवों एवं पांडवों के बीच युद्ध होने की खबर पता चली तो उन्होंने भी युद्ध में हिस्सा लेने का निर्णय लिया। जब वह अपनी मां के पास आशीर्वाद लेने पहुंचे तो उन्होंने बताया कि वह हारे हुए पक्ष की ओर से युद्ध लड़ने वाले हैं। जब माता को बर्बरीक के इस बात का पता चला तो वे ब्राह्मण का रूप धारण कर उनका मजाक उड़ाने लग गए और कहा कि दो-तीन बाण से आप क्या युद्ध लड़ने वाले हैं।
तब बर्बरीक के द्वारा बताया गया कि उनका एक बाण शत्रु सेना को मारने के लिए पर्याप्त है। ऐसे में यदि वह तीनों बाण का इस्तेमाल करते तो सृष्टि का विनाश निश्चित था। यह जानकर भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक को चुनौती देते हुए कहा कि पीपल के इन सभी पत्तों को बेधकर बताओं। बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार कर ली और श्री कृष्ण ने उनकी परीक्षा लेने के लिए एक पत्ता अपने पैर के नीचे दबा लिया। बलवान बर्बरीक ने एक तीर से सभी पत्तों पर निशाना लगा दिया और श्रीकृष्ण के पास जाकर अनुरोध किया कि अपना पैर हटा दीजिए नहीं तो आपके पैर पर चोट लग सकती है।
इसके बाद श्री कृष्ण जी ने भगवान बर्बरीक से पूछा कि वे युद्ध किसकी तरफ से लड़ना चाहते हैं। बर्बरीक ने जवाब दिया कि जो भी पक्ष युद्ध में हारेगा मैं उनकी तरफ से लगूंगा। भगवान श्री कृष्ण को यह अच्छी तरह ज्ञात था कि युद्ध में हार तो कौरवों की ही होनी है। ऐसे में यदि बर्बरीक उनके साथ युद्ध लड़ते तो इसका परिणाम गलत साबित हो सकता था। ऐसे में भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक से दान मांगा। और दान के रुप में उन्होंने बर्बरीक का सिर मांगा। बर्बरीक ने कहा कि मैं दान जरूर दूंगा। हार माने भगवान श्री कृष्ण के चरणों में अपना सिर काट कर दिया। आखिरी इच्छा के तौर पर उन्होंने कहा कि मैं महाभारत का युद्ध अपनी आंखों से देखना चाहता हूं । श्री कृष्ण ने उनकी बात को मान लिया और उनका सिर एक पहाड़ी के ऊपर रख दिया जहां से बर्बरीक अपनी आंखों से युद्ध देख सकते थे। बर्बरीक के इस महान बलिदान से भगवान श्री कृष्णा प्रसन्न हुए और उन्होंने वरदान के रूप में बर्बरीक को यह वरदान दिया कि आप कलयुग में भगवान श्री कृष्ण के नाम से जाने जाओगे । जो कि आज खाटू श्याम जी के नाम से पूरी सृष्टि में जाने जाते हैं। इसलिए बाबा खाटू श्याम जी को भगवान श्री कृष्ण का परम अवतार भी माना जाता है।
दोस्तों यह था आज का लेख खाटू श्याम मंदिर का इतिहास ( Khatu Shyam Mandir history in Hindi) आशा करते हैं कि आपको खाटू श्याम मंदिर का इतिहास के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त हो गई होगी। यदि आपको आज का यह लेख पसंद आया है तो अपने दोस्तों और अपने परिवार के साथ साझा करना बिल्कुल भी ना भूलें।
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